क्या है सिंधु जल सन्धि, कैसे भारत रोक लेगा सिंधनदी का पानी

एमवीइंडिया न्यूज।भारत ने मंगलवार को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए चरमपंथी हमले के बाद छह नदियों के जल बंटवारे से संबंधित सिंधु जल संधि को निरस्त कर दिया है। उसके बाद ये सवाल कई लोगों के मन में है। कि क्या है सिंधु जल सन्धि और क्या भारत सिंधु नदी के जल को रोक सकता है।
क्या है सिंधु जल सन्धि:
भारत और पाकिस्तान ने नौ वर्षों की बातचीत के बाद सितंबर 1960 में IWT (सिंधु जल सन्धि)पर हस्ताक्षर किये, जिसमें विश्व बैंक भी इस संधि का हस्ताक्षरकर्त्ता था।यह संधि सिंधु नदी और उसकी पाँच सहायक नदियों सतलज, ब्यास, रावी, झेलम और चिनाब के पानी के उपयोग पर दोनों पक्षों के बीच सहयोग तथा सूचना के आदान-प्रदान के लिये एक तंत्र निर्धारित करती है।इसमें निर्धारित किया गया है कि सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों का पानी भारत और पाकिस्तान के बीच किस प्रकार बांटा जाएगा।
इसने तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम को अप्रतिबंधित उपयोग के लिए पाकिस्तान को आवंटित कर दिया, भारत द्वारा कुछ गैर-उपभोग्य, कृषि और घरेलू उपयोगों को छोड़ दिया तथा तीन पूर्वी नदियों रावी, ब्यास और सतलुज को अप्रतिबंधित उपयोग के लिए भारत को आवंटित कर दिया ।इसका अर्थ यह है कि 80% पानी पाकिस्तान को चला गया, जबकि शेष 20% पानी भारत के उपयोग के लिए बचा रहा।
पानी रोकना मतलब युद्ध की कार्रवाई..
1960 में हुई सिंधु जल संधि दो युद्धों के बाद भी कायम रही। इसे सीमापार जल प्रबंधन के एक उदाहरण के रूप में देखा गया।पहलगाम आतंकी हमले के बाद यह रोक भारत के पाकिस्तान के ख़िलाफ़ उठाए गए कई क़दमों में से एक है।भारत ने पाकिस्तान पर चरमपंथ को समर्थन देने का आरोप लगाते हुए ये क़दम उठाए हैं। भारत की इस कार्रवाई के बाद पाकिस्तान ने भारत के ख़िलाफ़ जवाबी कार्रवाई भी की है। पाकिस्तान ने कहा है कि पानी रोकने को ‘युद्ध की कार्रवाई’ के रूप में देखा जाएगा।पिछले कई सालों से भारत और पाकिस्तान विश्व बैंक की मध्यस्थता में की गई संधि के तहत क़ानूनी रास्ते अपनाते रहे हैं।लेकिन पहली बार किसी देश ने इसके निलंबन की घोषणा की है। ख़ासकर ये देश भारत है जिसके पास भौगोलिक लाभ हासिल है।
पाकिस्तान को अपनी लाइफ लाइन से होना पड़ेगा वंचित..
हालांकि निलंबन का असली मतलब क्या है? क्या भारत सिंधु नदी के पानी को रोक सकता है या उसका रुख़ मोड़ सकता है, जिससे पाकिस्तान को उसकी लाइफ़लाइन से वंचित होना पड़ सकता है? सवाल ये भी है कि क्या भारत ऐसा करने में सक्षम भी है?
एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत के लिए पश्चिमी नदियों के पानी के प्रवाह को रोकना आसान नहीं है। क्योंकि इसके लिए बड़ी स्टोरेज और इतनी बड़ी मात्रा में पानी का प्रवाह मोड़ने के लिए जितनी नहरों की ज़रूरत है उतनी का भारत के पास फ़िलहाल नहीं है।साउथ एशिया नेटवर्क ऑन डैम, रिवर्स और पीपल्स के रिज़नल वाटर रिसोर्स एक्सपर्ट्स का कहना हैं, “भारत में जो बुनियादी ढांचा है वो ज़्यादातर नदी पर चलने वाले हाइड्रोपावर प्लांट्स का है जिन्हें बड़ी स्टोरेज की ज़रूरत नहीं है।”ऐसे हाइड्रोपावर प्लांट बड़ी मात्रा में पानी नहीं रोकते और बहते पानी के फोर्स का इस्तेमाल करके टर्बाइनों को घुमाते हैं और बिजली पैदा करते हैं।
संधि से नुकसान में अब तक भारत..
भारतीय एक्सपर्ट्स का कहना है कि बुनियादी ढांचे की कमी के कारण भारत संधि के तहत मिलने वाले झेलम, चिनाब और सिंधु नदी के 20 फीसदी हिस्से का इस्तेमाल भी नहीं कर पा रहा है।इसी वजह से स्टोरेज के निर्माण की वकालत की जाती रही है। लेकिन पाकिस्तान संधि के प्रावधानों का हवाला देकर इसका विरोध करता है।एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारत अब पाकिस्तान को सूचित किए बिना मौजूदा बुनियादी ढांचे में बदलाव कर सकता है या फिर नए ढांचे का निर्माण कर सकता है।इससे ज़्यादा पानी को रोका जा सकता है या फिर उसका रास्ता बदला जा सकता है।एक्सपर्ट कहते हैं, “अतीत के उलट अब भारत को पाकिस्तान के साथ अपनी परियोजना के दस्तावेज़ साझा करने की ज़रूरत नहीं होगी।”
गर्मी में पाकिस्तान के लिए ज्यादा मुसीबत
यूनिवर्सिटी में अर्बन एनवायरमेंटल पॉलिसी और एनवायरमेंटल स्टडी के असिस्टेंट प्रोफे़सर हसन एफ़ ख़ान ने डॉन न्यूज़पेपर में लिखा, “गर्मी के मौसम में क्या होगा वो चिंता का विषय है।उस वक्त पानी का बहाव कम होता है और स्टोरेज ज़्यादा अहमियत रखती है। टाइमिंग बेहद महत्वपूर्ण है।”उसी दौरान संधि संबंधी बाध्यताओं की अनुपस्थिति को ज़्यादा महसूस किया जाएगा।
संधि रद्द तो अब डाटा शेयर नहीं करेगा भारत
संधि के तहत भारत को पाकिस्तान के साथ हाइड्रोलॉजिकल डेटा शेयर करना ज़रूरी है। ये डेटा बाढ़ के पूर्वानुमान, सिंचाई, हाइड्रोपावर और पेयजल से जुड़ी योजना बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं।इस क्षेत्र में मानसून के मौसम में बाढ़ आती है।जो जून में शुरू होकर सितंबर तक चलती है।लेकिन पाकिस्तानी अधिकारियों का कहना है कि भारत पहले से बहुत कम हाइड्रोलॉजिकल डेटा शेयर कर रहा है। इंडस वाटर ट्रीटी के पूर्व पाकिस्तान एडिशनल कमिश्नर सिहराज मेमन ने बीबीसी उर्दू से कहा, “इस घोषणा से पहले भी भारत महज़ 40 फीसदी डेटा ही शेयर कर रहा था।”
पाकिस्तान के खिलाफ वाटर बम भी बन सकती है सिंधु नदी…
सिंधु जल संधि रद्द होने के बाद सिंधु नदी के जल को भारत पाकिस्तान के खिलाफ वाटर बम के रूप में भी इस्तेमाल कर सकता है
यह मुद्दा जो हर बार तनाव बढ़ने के समय उठता है कि क्या ऊपरी देश निचले देश के ख़िलाफ़ पानी को ‘हथियार’ बना सकता है। इसे अक्सर ‘वॉटर बम’ कहा जाता है। जहां ऊपरी देश अस्थायी रूप से पानी को रोक सकता है और फिर बिना किसी चेतावनी के अचानक छोड़ सकता है। जिसकी वजह से निचले हिस्से में भारी नुकसान हो सकता है। परन्तु
एक्सपर्ट्स का कहना है कि भारत को सबसे पहले अपने ही क्षेत्र में बाढ़ का ख़तरा होगा क्योंकि उसके बांध पाकिस्तान की सीमा से बहुत दूर हैं। लेकिन अब भारत बिना किसी पूर्व चेतावनी के अपने जलाशयों से गाद बहा सकता है जिससे पाकिस्तान के हिस्से की तरफ़ नुक़सान होगा।
सिंधु जैसी हिमालयी नदियों में गाद का स्तर बहुत अधिक होता है। ये बांध और बैराजों में जल्दी ही जमा हो जाती है। इस गाद के अचानक बह जाने से नीचे की ओर काफ़ी नुक़सान हो सकता है।